कोरबा वीकेंड स्पेशल: “: “यह उन दिनों की बात है…” जब कोरबा की स्कूल की घंटी, एक अधूरी मोहब्बत की गवाह बनी

Must read

 

 

 वीकेंड स्पेशल : “: “ये उन दिनों की बात है…” जब कोरबा के स्कूल की घंटी, एक अधूरी मुहब्बत की गवाह बनी

 

 

 

 

कोरबा:-”ये उन दिनों की बात है…”जब प्रेम शब्द की बात नहीं, तो भावना उत्पन्न हो जाती थी। जब कोरबा की गैलरी में तेज बाइक नहीं, साइकिल की घंटियाँ थीं। और जब स्कूल के गेट से अनफॉलो एक लड़की, किसी लड़के के दिल में उम्रभर की उछाल दे दी गई।

ये उन दिनों की बात है…”

जब ना डेटिंग ऐप थे,

ना कैंडल लाइट डाइनिंग…

फिर भी किसी की एक मुस्कान, जिंदगी भर का साथ बन गयी थी।

 

1990 का कोरबा… बिजली कुछ वक्त की मेहमान, लेकिन थी सितारों की खली सच्ची। ठीक है उसी समय शहर के एक नामी स्कूल के यूनिफॉर्म में लिटोरी एक प्रेमकहानी ने जन्म लिया – बिना नाम के, बिना मंजिल के।

 

राहुल (काल्पनिक नाम) एक शर्मिला लड़का, दुनिया से शुरू हुआ था माया, राहुल मिश्रा, 12वीं का छात्र। कोरबा के राजेंद्र प्रसाद नगर क्षेत्र में रहते थे। पिता बालको होटल में थे। राहुल गांधी का नहीं, संभावनाओं का लड़का था। हर सुबह स्कूल की प्रार्थना में उसकी भी प्रार्थना होती है… बस एक चेहरा देखने की।

 

माया – जो चुप थी, लेकिन उसकी मुस्कान सब कह जाती थी, माया वर्मा, 11वीं की थी, स्कूल की सबसे शांत लड़की मानी जाती थी। कभी जल्दी नहीं बोलती थी, कभी किसी ग्रुप में शामिल नहीं होती थी। उनकी उपस्थिति में राहुल के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा थी।

 

जब एक अक्षर ने पहली बार दिल की बात कही

राहुल ने अपनी बात को पढ़ने के लिए कहा, जंहा नहीं, कलम। एक दिन उसने अपनी डायरी से एक छोटा सा पन्ना सूत्रा लिखा, “माया, तुम रोज दिखती हो। कारण नहीं है… बस दिल करता है। तुम अच्छी लग रही हो।”

 

माया ने पढ़ा। कोई जवाब नहीं. लेकिन अगले दिन जब प्रार्थना के समय उसकी नजर मिल गई – उसने मुस्कुरा दिया

 

बिलासपुर के वो ट्रेवल टिकट, जो बने रहे

फरवरी 1991, बोर्ड परीक्षा के ठीक पहले खबर आई माया के पिता पोस्टर सितारा बिलासपुर जा रहे हैं, राहुल को उनके दोस्तों से यह खबर मिली। वह आखिरी दिन तब था जब माया स्कूल आई थी।

ना कोई विदाई…

ना कोई शब्द… बस वो मुस्कान और किताब में राखियां उसके साथ चली गईं।

समय बीत गया, लेकिन एक कोना खाली रह गया

राहुल ने की पढ़ाई, फिर किया रायपुर डीलर का ग्रेजुएशन। लेकिन कभी कोई माया जैसा नाम दिल में नहीं बसा पाता। शादी नहीं की… स्थान पर रखा –

कुछ लोग राजनीतिक रह चुके हैं, तभी तो पूरी जिंदगी उन्हें याद आ सकती है।”

 2025, एक अजनबी सी मुलाकात – 34 साल बाद

मार्च 2025, कोरबा के स्कूल में पूर्व छात्रों का पुनर्मिलन कार्यक्रम आयोजित किया गया था। राहुल, अब राजस्व विभाग के अधिकारी बन गये थे।

 

वहीं, कार्यक्रम खत्म होने के बाद, स्कूल के बाहर होने वाली एक महिला को देखा,हाथ में अपनी बेटी का हाथ पकड़ा…

 

वो माया थी। बाल अब ठीक नहीं थे, लेकिन मस्कुल-पुस्तक ही। राहुल ने कुछ पल ठिठका, माया ने एक खिलौना बनाया, और फिर बच्ची को लेकर चला गया।

कोई शब्द नहीं, कोई नाम नहीं… बस एक नजर – जिसने सब कहा।

 “यादें जो कभी पुरानी नहीं होतीं…”

राहुल और माया की कहानी अधूरी रह गयी,

 

लेकिन वो एहसास… आज भी ज़िंदा है 1990 में।

ना वादा हुआ,

ना डेटेंनामेबामा —

फिर भी एक अक्षर, एक मस्जिद और स्कूल की वो सीढ़ियाँ…

सब कुछ कह गये।

कुछ पसंद मुकम्मल न भी पूरे होते हैं —

क्योंकि उन्हें “मंज़िल” नहीं,

“याद” बनाया जाता है।

और जब राहुल ने माया को आखिरी बार सेमीफाइनल में देखा तो उन्होंने बस एक बात महसूस की

“कभी-कभी अधूरी कहानी भी जिंदगी की सबसे खूबसूरत झलक होती है।”

More articles

Latest article