कोरबा सुशीला हो या मूलको बाई,तेंदूपत्ता के बढ़े दाम ने संग्राहकों में खुशियां जगाई*

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*सुशीला हो या मूलको बाई, तेंदूपत्ता के तले हुए दाम ने संग्रहकों में खुशियां जगाई*

 

 

गर्मी के दिनों में हरा सोना बन गया है स्टॉक का बड़ा जरिया*

*गाँव-गाँव इन दिनों तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता का चल रहा है चिल्ला*

 

कोरबा इन दिनों सूरज की धूप बहुत तेज है। गाँव के अनेक तालाबों में पानी कम है। खेत की दुकानें हुई हैं। दो को भले ही सब्जी में सब्जी पसरा है, फिर भी गांव के उन अनगिनत लोगों में उत्साह है जो इन दिनों तेंदूपत्ता का संग्रहण करते हैं। उनका हौसला सुबह से लेकर देर शाम तक है। आस-पास के जंगलों में तेंदूपत्ता तोड़ते हुए ग्रामीण, गठरी या बोर में भरा हुआ घर का टुकड़ा ग्रामीण या फिर घर की डेहरी, परछियो में एकजुट होकर तेंदू के पत्तों को आकर्षित करते हुए जमाते रहे, गांव के किसी खुली जगह में फड़ अभ्यारण्य की उपस्थिति में इन तेंदूपत्ता की गड्डी को एकबारगी क्रम से सजाते हुए अनायास नजर आ रहे हैं। गांव के बच्चे, महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी इस काम में लगे हुए हैं। उन्हें ख़ुशी है कि इस हरे सोने के दाम बढ़ने से उनके साथी भी और भी बड़े पैमाने पर एकत्रित होकर उन्हें और अधिक राशि देंगे। संग्रहणकर्ता में खुशी की बात यह है कि अब तेंदूपत्ता प्रति मानक बोरा का दाम 4 हजार से 5500 रुपए प्रति मानक बोरा कर दिया गया है।

जिले के कोरबा और कटघोरा वनमंडल में बड़ा भू भाग जंगल है। इन जंगलों में और गाँव के आसपास के खुले स्थानों में तेंदूपत्ता भी है। सरकार द्वारा तेंदूपत्ता संग्रहणकों को नीचे दिए गए प्रोत्साहन और राशि से वनांचल क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य करते हैं। यह उनकी टिप्पणी का मुख्य स्रोत भी है। विशेषकर गर्मी के दिनों में जब कुछ काम नहीं हुआ तब तेंदूपत्ता के संग्रहकर्ता से उन्हें एक अतिरिक्त आय का जरिया मिल जाता है। ही पोड़ी उपरोड़ा क्षेत्र के सुदूर ग्राम दम्हामुड़ा में रहने वाले आदिवासियों के परिवार देव प्रताप पोर्ते और उनकी पत्नी सुशीला पोर्ते ऐसे दोस्त हैं जो बड़ी सुबह से जंगल की ओर निकल जाते हैं। सिर्फ वे ही नहीं जाते, गांव में रहने वाले ज्यादातर तेंदूपत्ता तोड़ने वाले संग्रहणक जाते हैं। सुशीला का कहना है कि सुबह से दो बजे तक पत्ते तोड़ने का काम होता है। इसके बाद इसे गठरी में बेचकर घर ले जाया जाता है। दोपहर बाद खाना खाने के बाद फिर से काम शुरू होता है। तोड़े हुए तेंदूपत्ते को 50-50 पत्तों का हिस्सा बनाना चाहते हैं। पत्तों को साफ कर टीम बनाई जाती है। घर के परची पर बैल बने सुशीला के पति देव प्रताप का कहना है कि वे लोग बहुत ज्यादा दूर नहीं जाते। जंगल से आस-पास की जगहें स्थित हैं। परसा के पेड़ के विद्यार्थियों से 50-50 पत्तो की गड्डी टूटे हुए हैं। सुशीला बाई बाई बताती हैं कि इस बार की तुलना में पिछले साल की तुलना में अधिक पत्ते नहीं टूटे थे। इस बार अभी से लगे हैं। महतारी वंदन योजना से प्रति माह एक हजार रुपये प्राप्त करने वाली सुशीला बाई ने बताया कि अब प्रति माह 5500 रुपये प्रति मानक बोरा है। इससे पहले उनकी सूची। पहले मेहनत भी ज्यादा करना था और कीमत भी कम थी। अब दम बढ़ने से मैं ही नहीं अन्य संग्राहक भी खुश हैं और बड़े उत्साह के साथ टूट रहे हैं। उन्होंने बताया कि महतारी वंदन योजना की राशि उनकी बहुत काम आती है। तेंदूपत्ता से जो उगाता है उसका उपयोग घर बनाने के लिए किया जाता है। अपने घर के आसपास तेंदूपत्ता तोड़ने में मूलको बाई ने बताया कि वे जितने अधिक पत्ते तोड़ेंगे, उनकी राशि उतनी ही होगी। पहले 2500, फिर 4000 और अब 5500 रुपए प्रति मानक बोरा है। यह दूर-दराज में रहने वाले पुनर्वित्त के आर्थिक अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दम्हा मंचा की ही रहने वाली मूलको बाई ने बताया कि रोज सुबह तेंदूपत्ता तोड़ने का जंगल है। इसे साथी पार्टनर रख रही है। उन्होंने बताया कि ये खुशी की बात है अब पहले से ज्यादा पैसा मिलेगा। सुशीला बाई ने बताया कि तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्ड भी बना है। इसके माध्यम से बीमा में बच्चों को पढ़ने की सुविधा भी शामिल है। इन संग्रहकों ने प्रति मानक बोरा में वृद्धि के लिए खुशियों की मांग करते हुए मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को भी धन्यवाद दिया।

 

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